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यह एक बहुत सही सवाल जागरण फोरम द्वारा उठाया गया है,और इस परिप्रेक्ष्य में मेरा मानना है कि किसी भी व्यक्ति,जो भारतीय हो,को अभिव्यक्ति कि उतनी ही आजादी प्राप्त होनी चाहिए जिससे किसी अन्य कि भावनाओं को ठेस ना लगे ,ऐसी अभिव्यक्ति जो कि राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय मान-मर्यादाओं को किसी भी रूप में गौरवान्वित करता हो ,अपमानित नहीं | एक वाक्य में अगर कहा जाय तो अभिव्यक्ति की आजादी अपने पद,गरिमा और राष्ट्रीय भावनाओं के अनुरूप होना चाहिए |
हाल ही में प्रशांत भूषण जी द्वारा जिस प्रकार के विचार व्यक्त किये गए उसे हम अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का दुरूपयोग कह सकतें हैं |अन्ना जी की टीम से जुड़े होने के कारण उनका दायित्व और भी बढ़ जाता है कि वे ऐसी कोई बात ना कहें जिससे अन्ना जी के ऐतिहासिक आन्दोलन और हमारे राष्ट्रीय भावनाओं का कही से भी अपमान हो |हालांकि अभिव्यक्ति की आजादी का दुरूपयोग केवल प्रशांत भूषण ही नहीं,बल्कि सत्ता विपक्ष सहित तमाम राजनीतिक दलों के कुछ मानिंद उलटा-सीधा बोलकर मीडिया में बनें रहना चाहतें हैं और मीडिया भी ऐसे ही लोगों के पीछे कैमरा लिए दौड़ती-फिरती है |
कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि किसी की भी आजादी की अभिव्यक्ति वहीँ तक सीमित है जहां तक दुसरे के अधिकार और व्यवहार का हनन नहीं होता हो |
रुद्रनाथ त्रिपाठी (एडवोकेट )
वाराणसी
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