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दो वक्त की रोटी,बदन पर एक कपड़ा और सर पर एक छत यही आम आदमी की जीवन का पहली और महत्वपूर्ण आवश्यकता है और इसी आवश्यकता को पूरा करने का उद्देश्य लिए एक आम आदमी सुबह से शाम तक लगा रहता है |इसी क्रम में त्यौहार और शादी-विवाह जैसे कार्यक्रमों के आ जाने पर आदमी के खर्च के रजिस्टर का पन्ना तेजी से भरने लगता है ,और जैसे-जैसे ये पन्ना भरता है उसके माथे पर चिंता की लकीरें धुधलापन छोड़ स्पष्ट दिखाई देने लगती हैं |
लेकिन इन लकीरों को देखने,समझने और महसूस करनेवाला कोई नहीं है |सरकार ना जाने किन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए काम करती है और ना जाने क्या और किसके लिए काम कर रही है ? कभी-कभी ये लगता है कि इस सरकार ने शपथ देश की सेवा का नहीं बल्कि देश को गर्त में ले जाने का लिया है |हर तीसरे दिन के अखबारों की ख़बरें काटें की तरह चुभती है ,कभी पेट्रोल-डीजल के दामों में बृद्धि की ख़बरें तो कभी गैस सिलेंडरों की भारी किल्लत होने की डरावनी ख़बरें ,कभी मंत्री महोदय जी के करोणों रुपयों के डकरने की बातें तो कभी देश और समाज के लिए कुछ कर सकने वालों के पीछे पड़ी सरकारी तंत्रों की ख़बरें |
आखिर हमें कभी भी ऐसी खबर क्यों नहीं सुनाई पड़ती कि सरकार ने इतने रोज़गार उपलब्ध कराये,इतने भ्रष्ट लोगों को अपने मंत्रिमंडल और अपनी पार्टी से निकाला,ऐसी ख़बरें क्यों नहीं आती कि अन्ना जी जैसे देश और समाज के लिए जीने वालों लोगों को सरकार ने कम से कम उचित सम्मान दिया |क्यों ख़बरों को पढ़कर ऐसा लगता है कि सरकार बस और बस आम आदमी के पीछे पड़ी है ?क्यों आम आदमी को चैन से जीते हुए नहीं देखना चाहती सरकार ? क्यों आम आदमी के साथ दुश्मन जैसा व्यवहार कर रही है सरकार ?
राहुल गांधी जी गरीबों,दलितों,मुसलमानों,किसानों के घर जा-जाकर चाय पीतें हैं ,खाना खातें हैं क्या उनके चाय पीने और खाना खा लेने से उस आदमी की गरीबी ख़तम या कम हो जायेगी ?क्या उन्होंने ये नहीं समझा कि वह गरीब इस महगाई से खुद ही त्रस्त है उस पर इतना बोझ और पडेगा तो उस की क्या हालत होगी ?वो श्रीमती सोनिया गांधी और मनमोहन जी से ये क्यों नहीं कहते कि उन गावों और वहाँ के लोग कैसे जी रहे हैं ? उन पर इतना बोझ और लादना कहाँ का इन्साफ है ?
अभी समय है और मुझे उम्मीद है कि ममता जी के सरकार को दिए गए अल्टीमेटम से सरकार कुछ सबक लेगी और जल्द ही जनता को बड़ी राहत देने वाली कोई खबर सुनाएगी और अगर ऐसा नहीं करेगी तो रोज-रोज जनता आपसे एक ही सवाल पूछेगी ————-
आम आदमी के पीछे हाथ धोकर क्यों पड़े हो भाई !
रुद्रनाथ त्रिपाठी (एडवोकेट )
वाराणसी
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