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“निर्वाचित व्यक्ति जनता द्वारा निर्वाचित नही है” ……… (चुनाव में धनबल व बाहुबल का औचित्य )

punj
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उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड ,पंजाब में इन दिनों चुनावी मौसम बड़ी उमस भरी है | सभी नेता  बादल (मतदाता ) की ओर टकटकी लगाये बैठे हैं , भिन्न-भिन्न तरीकों से उन्हें मनाने, जगाने, समझाने, की कोशिश लगातार कर रहें हैं , और यह कोशिश बादलों के बरसने  (मतदान करनें तक ) तक बदस्तूर जारी रहेंगें | बादल (मतदाता ) भी असमंजस में हैं कि कहाँ बरसें की खेत (हमारे देश) में हरियाली और खुशहाली आ जाए |


चुनाव की इस सरगर्मी में तमाम नेतागण अपने वादे और इरादे लिए जनता के द्वार पर दस्तक दे रहें है इनमें विभिन्न राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के साथ-साथ कुछ प्रादेशिक और कुछ निर्दल प्रजाति के हैं |  कुछ पढ़े-लिखे ,  ज्यादा अनपढ़ ,  कुछ संस्कारी , ज्यादातर असंस्कारी,   कुछ अल्प धनी, ज्यादातर मालामाल ,  कुछ सीधे-साधे ,  कुछ लुच्चे-लफंगे-मवाली हर तरह के व्यक्ति अपनी ढपली अपना राग लिए इस चुनाव से सहभागिता कर रहें हैं |


मैंने इनमे से प्रत्येक प्रकार के नेताओं  से उनके बारे में जानना चाहा |सर्वप्रथम मैंने एक छुटभैये नेता (प्रत्याशी) से पूछा की इन चुनावी दिनों में आप कितनें लोगों के और कुल कितनी बार चरणामृत (चरण-स्पर्श ) ले लेते हैं ? उसने मुझे संख्या लाखों-करोणों में बतायी | और यह भी बताया कि उनके चुनाव ज्यादातर धनाभाव में  फुस्स हो जातें हैं |कुल मिलाकर ऐसे नेता चौथे -पांचवे-छठवे  और इसके बाद के स्थान के लिए अपनी मानसिक स्थिति बना कर रखते हैं और मतदाता भी इन्हें निरीह किस्म का प्रत्याशी समझ कर उसी प्रकार से डील करतें हैं |


फिर मैंने एक मिडिल क्लास नेता (प्रत्याशी ) मतलब दस-बारह दोपहिया, दो-चार चारपहिया और पचीस-पचास लाख की हैसियत रखने वाले तथा छोटे-छोटे अपराधों जैसे मार-पीट,गाली-गलौज आदि में थोडा-बहुत हिस्सेदारी कर लेने वाले होतें हैं , से यही प्रश्न दुहराया ,वो दबी जुबान से मुस्कुराया और बताया की चुनाव में हमें कौवे की तरह हर वोट पाने की चेष्ठा ,बगुले की तरह हर मतदाता पर नजर,कुत्ते जैसी नींद (कुल जमा ३-४ घंटे),जनता की खरी-खोटी का अल्प आहार , और घर से हमेशा चुनावी दौरों अर्थात गृहत्यागी होना पड़ता है |  और इस तरह चौबीस घंटे हमारी नजर सिर्फ और सिर्फ वोट और वोटर  के इर्द-गिर्द ही रहती है | इस दौरान हमें कुछ अनचाही घोषणाएं , अनचाहे वादे अनचाहे कदम उठाने पड़ते हैं और इतना करने के वावजूद हमें हमारे भाग्य के आधार पर सफलता हासिल होती है |

फिर मैंने सोचा कि अब यही सवाल एक हाई क्लास के नेता (प्रत्याशी),यहाँ यह बताना जरुरी है कि हाई क्लास का मतलब नेताजी की योग्यता,विद्वत्ता,राष्ट्र के प्रति समर्पण से ना होकर नेताजी की अकूत संपत्ति,लूट,हत्या ,डकैती ,बेईमानी में रशूख से है ,  से जान लूँ   ,इस उद्देश्य से मै पहुचा हाई प्रोफाइल नेता जी से मिलने ….तीन घंटे पैतालीस मिनट बाद माननीय पंद्रह-बीस मुस्टंडों के साथ अवतरित हुए ,पहले तो घबरा गया फिर किसी तरह संभला और नेताजी से सवाल पूछा ,हाई क्लास के नेता अत्यंत सहज-सरल और शांत भाव से बताने लगे “देखो भाई मेरे चुनाव प्रचार का तरीका सबसे अलग है |मै पिछले चार बार से विधायक हूँ |मेरा चुनाव लड़ने का तरीका कुछ अलग सा है , मै जितने वोट से चाहता हूँ जीतता हूँ ,चार-पांच हजार वोट की क्षमता तो मेरे चमचे ही रखतें हैं , तीस-पैतीस हजार वोट मेरी जाति का वोट है इसलिए वो मेरा ही होता है ,पंद्रह हजार वोट मेरी पार्टी के नाम पर मुझे मिलता है ,लेकिन केवल इतने से जीतना संभव नही होता इसलिए आठ -दस  हजार वोट मै खरीदता हूँ ,और चार-पांच हजार वोट मै मतदाताओं को दारा-धमका कर पाता हूँ और इस तरह हमेशा जीतता हूँ और इस बार भी जीत रहा हूँ आप चाहें तो अखबारों में छपवा सकतें हैं |”


इतना सब सुन मै अवाक था | रास्ते भर केवल यही सोचता रहा कि जब तक चुनाओं  में सामान्य व्यक्ति की सहभागिता नही होगी तब-तक लोकतांत्रिक व्यवस्था की मर्यादा  तार-तार होती रहेगी |चुनाओं में धनबल और बाहुबल के बढ़ते कदम अच्छे संकेत नही हैं | इसका कोई औचित्य नही है और अगर यह कहा जाय कि धनबल और बाहुबल के बढ़ते प्रभाव के कारण “निर्वाचित व्यक्ति आज पूरी तरह से जनता द्वारा निर्वाचित नही है”तो यह कदाचित गलत नही है |


रूद्र नाथ त्रिपाठी   “पुंज”   (एडवोकेट) वाराणसी


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